कोहरा
जिंदगी के अल्फ़ाज़ में
क्या नहीं ढूंढा हमने
आवाज देते रहे
मिला कुछ नहीं हमें
जवानी चली गई
बुढ़ापा छा गया
इस लंबे अरसे में
कुछ जो मिला था
वह भी खो दिए हमने
हमारे मसीहा कहते हैं
हमने किस्मत लिख दिया
मैंने देखा था बहुत पहले
उनका ही किस्मत
किसी और ने बना दिए थे
अजीब सा खेल है
इस प्राचीन नगरी में
कोहरा से ढका हुआ मैदान में
सब थपड़ी मार रहे हैं
प्रतिकृया दिनुहोस